जाति धर्म धन पद मान प्रतिष्ठा हैसियत से इसका कोई वास्ता नहीं है ।
3.
हरि और गुरू का रूप बना कर, उनको चैतन् य, साक्षात् प्रेमास् पद मान कर कितनी देर और कितना अपने साथ अनुभव करते हो।
4.
लेकिन पिछले पैंसठ साल से हो यह रहा है कि पंच-सरपंची हो या वार्ड मेम्बरी, विधायकी हो या सांसदी, सभी ने अपनी जिम्मेदारी को पद मान लिया है और उसे भोगने में लगे हुए हैं।
5.
कितनी भी बहुमूल्य भौतिक वस्तु अपने पास हो, या पद मान प्रतिष्ठा मिल जाए, यदि मन शांत न हो, मन कर्म और वचन से दूसरों को सुख न दे पायें तो मन कभी सच्चे सुख का उपभोग न कर पायेगा....
6.
कितनी भी बहुमूल्य भौतिक वस्तु अपने पास हो, या पद मान प्रतिष्ठा मिल जाए, यदि मन शांत न हो, मन कर्म और वचन से दूसरों को सुख न दे पायें तो मन कभी सच्चे सुख का उपभोग न कर पायेगा....